हाईकोर्ट में दवा गुणवत्ता पर सुनवाई: 25% सैंपल फेल, सरकार को फटकार
“दवा गुणवत्ता पर गंभीर चिंता: कोर्ट ने घटिया उत्पादों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की”
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि पूरे देश से हर महीने दवाइयों के सैंपल और टेस्टिंग करने वाले सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की जांच में राज्य में बनने वाली 25 प्रतिशत दवाइयों के सैंपल फेल हो रहे हैं।
सरकार को घटिया दवाइयों के मैन्युफैक्चरिंग पर कड़ी फटकार
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने सरकार को घटिया दवाइयों के मैन्युफैक्चरिंग पर कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने सुनवाई के दौरान पूछा कि सरकार दवाइयों की गुणवत्ता बढ़ाने और मिलावट को रोकने के लिए क्या कर रही है।
इस पर महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि सरकार इस मामले को गंभीरता से दे देख रही है। अगर कोई कंपनी घटिया दवाइयां बेचते हुए पाई जाती है तो उस पर कार्रवाई की जा रही है और जुर्माना लगाया जा रहा है।
दवाएं, टूथपेस्ट और हाल ही में हरे मटर का सैंपल भी तय मानकों पर खरा नहीं
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रजनीश मनिकताला ने अदालत को बताया कि हिमाचल में 670 कंपनियां दवाएं बना रही हैं। दवा निर्माता कंपनियों को सरकार तय मानकों के आधार पर स्टैंडर्ड सर्टिफिकेट और लाइसेंस जारी करती है।
दवाइयां बेचने से पहले लैब में इनकी टेस्टिंग होती है। उसके बाद ही इन्हें दूसरे राज्यों में जाता है। सीडीएससीओ ने इन्हीं दवाइयों के जब सैंपल लिए तो इनमें 186 फेल पाई गई।
हाईकोर्ट में 2023 में दायर इस जनहित याचिका पर संज्ञान लिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने कहा कि जानबूझकर और मिलीभगत से दवाओं की गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है।
सरकार को इस पर नकेल कसनी चाहिए। कोर्ट को यह भी बताया गया कि कुछ बड़ी कंपनियों की दवाएं, टूथपेस्ट और हाल ही में हरे मटर का सैंपल भी तय मानकों पर खरा नहीं उतरा है।