कैग रिपोर्ट में खुलासा: दिल्ली की नई शराब नीति से सरकार को भारी नुकसान
“दिल्ली की नई शराब नीति को लेकर कैग रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, इस नीति के कारण सरकार को 2000 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय नुकसान हुआ।“
नई नीति में एक व्यक्ति को दो दर्जन से ज्यादा लाइसेंस लेने की अनुमति दी गई, जिससे शराब वितरण प्रणाली (सप्लाई चैन) प्रभावित हुई और कई निजी कंपनियों को अनुचित लाभ मिला।
कैसे हुआ सरकार को नुकसान?
कैग रिपोर्ट के मुताबिक, नई शराब नीति के चलते दिल्ली सरकार को कई स्रोतों से बड़ा घाटा हुआ:
रिटेल दुकानें न खोलने से – ₹941.53 करोड़ का नुकसान।
सेरेंडर्ड लाइसेंस का फिर से टेंडर न करने से – ₹890 करोड़ का नुकसान।
कोविड-19 का हवाला देकर शुल्क छूट देने से – ₹144 करोड़ का नुकसान।
लाइसेंसधारियों से सही तरीके से जमा राशि न लेने से – ₹27 करोड़ का नुकसान।
कैसे बदली नई शराब नीति?
- पहले एक व्यक्ति को केवल एक शराब लाइसेंस मिलता था, लेकिन नई नीति में एक व्यक्ति को 24 से अधिक लाइसेंस लेने की अनुमति दी गई।
- 60% शराब की बिक्री सरकारी निगमों द्वारा होती थी, लेकिन नई नीति में कोई भी निजी कंपनी रिटेल लाइसेंस ले सकती थी।
- थोक विक्रेताओं का कमीशन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया।
- थोक का लाइसेंस शराब निर्माता और वितरकों को भी दिया गया, जिससे हितों का टकराव हुआ।
कैसे प्रभावित हुई शराब सप्लाई चैन?
कैग रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 का पालन नहीं किया गया।
थोक विक्रेताओं को ऐसे लाइसेंस मिले, जो मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल में भी शामिल थे।
इससे पूरी शराब सप्लाई चैन में गड़बड़ी हुई, जहां मैन्युफैक्चरिंग, होलसेलर और रिटेल के लाइसेंसधारियों के बीच कॉमन बेनिफिशियल ओनरशिप बन गई।
शराब वितरण पर कुछ कंपनियों का नियंत्रण हो गया, जिससे बाजार में एकाधिकार (monopoly) की स्थिति बन गई।
दिल्ली की नई शराब नीति को लेकर कैग रिपोर्ट में कई गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक खामियों का खुलासा हुआ है। इससे सरकार को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और शराब व्यापार कुछ निजी कंपनियों तक सीमित हो गया। इस नीति से सप्लाई चैन में गड़बड़ी हुई, जिससे शराब वितरण व्यवस्था पर कुछ बड़े कारोबारियों का नियंत्रण हो गया। अब इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार और जांच एजेंसियों की आगे की कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं।