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दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग: बढ़ता खतरा और समाधान

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परिचय

दिल्ली, भारत की राजधानी, एक विशाल महानगर है जहाँ जनसंख्या और औद्योगिकीकरण के बढ़ते स्तर के साथ-साथ कचरा प्रबंधन एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। हाल के वर्षों में कूड़े के ढेर में आग लगने की घटनाएँ बढ़ी हैं, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस लेख में, हम दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग लगने के कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग की घटनाएँ

दिल्ली में भलस्वा, गाजीपुर और ओखला जैसे बड़े लैंडफिल साइट्स पर अक्सर आग लगने की घटनाएँ होती हैं। ये स्थान हजारों टन कचरे से भरे हुए हैं, जो समय के साथ जैविक और गैर-जैविक कचरे के मिश्रण के कारण गर्मी उत्पन्न करते हैं और स्वतः जलने लगते हैं

कुछ प्रमुख घटनाएँ:

  • भलस्वा लैंडफिल (2023): अप्रैल 2023 में, दिल्ली के भलस्वा लैंडफिल साइट पर भीषण आग लगी, जिसने 48 घंटे से अधिक समय तक धुआं फैलाया
  • गाजीपुर लैंडफिल (2022): मार्च 2022 में गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लगने की घटना हुई, जिससे स्थानीय निवासियों को सांस लेने में कठिनाई और वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि देखने को मिली।
  • ओखला लैंडफिल (2021): यहाँ भी गर्मियों के महीनों में आग लगने की घटनाएँ नियमित रूप से दर्ज की गईं, जिससे आसपास के क्षेत्रों में धुंआ और गंध का प्रसार हुआ।

कूड़े के ढेर में आग लगने के प्रमुख कारण

दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग लगने के कई प्रमुख कारण हैं, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

1. जैविक अपशिष्ट का विघटन और मीथेन गैस का उत्सर्जन

  • कचरे के ढेर में जैविक अपशिष्ट (खाद्य अवशेष, पौधों की सामग्री) जब विघटित होता है, तो मीथेन गैस का निर्माण होता है।
  • मीथेन एक ज्वलनशील गैस है, जो यदि अधिक मात्रा में इकट्ठा हो जाए, तो थोड़ी सी चिंगारी से आग पकड़ सकती है

2. गर्मी और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • दिल्ली में गर्मियों के दौरान तापमान 45°C से ऊपर पहुंच जाता है, जिससे कचरे के ढेर में स्वतः दहन (self-ignition) की संभावना बढ़ जाती है
  • जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी और शुष्क हवाओं से आग लगने की घटनाएँ अधिक हो रही हैं।

3. मानवीय गतिविधियाँ और लापरवाही

  • कुछ मामलों में स्थानीय लोग या कचरा बीनने वाले लैंडफिल साइट्स पर कचरे को जलाते हैं, जिससे आग फैल सकती है।
  • सिगरेट, पटाखे या अन्य जलने वाली वस्तुएं गलती से गिरने से भी आग भड़क सकती है।

4. कचरा प्रबंधन में कमी

  • दिल्ली में हर दिन 11,000 मीट्रिक टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसका केवल 50-60% ही वैज्ञानिक रूप से निपटारा किया जाता है
  • बड़े लैंडफिल साइट्स पर कचरा प्रबंधन की कमी और कचरे का सही तरीके से पृथक्करण होने के कारण आग लगने की घटनाएँ अधिक होती हैं

आग के प्रभाव

कूड़े के ढेर में आग लगने से दिल्ली में पर्यावरण, स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।

1. वायु प्रदूषण में वृद्धि

  • कूड़े में आग लगने से खतरनाक गैसें (जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, और डाइऑक्सिन्स) निकलती हैं।
  • यह दिल्ली के पहले से ही प्रदूषित वातावरण को और खराब कर देती हैं

2. स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव

  • श्वसन समस्याएँ: धुएं में मौजूद बारीक कण (PM2.5 और PM10) फेफड़ों में जाकर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों के संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
  • आंखों और त्वचा में जलन: प्रदूषित गैसों के संपर्क में आने से लोगों को आंखों में जलन, एलर्जी और स्किन इरिटेशन हो सकती है।
  • दीर्घकालिक बीमारियाँ: लैंडफिल से निकलने वाले डाइऑक्सिन्स और अन्य जहरीले रसायन कैंसर और हृदय रोगों का कारण बन सकते हैं

3. जल प्रदूषण

  • आग बुझाने के लिए उपयोग किए गए रसायन और पानी भूमिगत जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं
  • गाजीपुर और भलस्वा लैंडफिल के पास जल स्रोतों में भारी धातुओं और विषैले रसायनों की मौजूदगी पाई गई है।

4. आसपास के निवासियों पर प्रभाव

  • आग लगने से निकलने वाले धुएं और गंध के कारण स्थानीय निवासियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है
  • कई लोग अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं, क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।

समाधान और रोकथाम के उपाय

दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार, नागरिकों और निजी संगठनों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है

1. कचरा प्रबंधन में सुधार

  • कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन आवश्यक है
  • गीले और सूखे कचरे को अलगअलग इकट्ठा करना चाहिए ताकि जैविक कचरे से मीथेन बनने की संभावना कम हो।
  • दिल्ली नगर निगम को कचरा रिसाइक्लिंग और अपशिष्ट ऊर्जा संयंत्रों पर अधिक निवेश करना चाहिए।

2. लैंडफिल साइट्स का पुनर्विकास

  • गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल को चरणबद्ध तरीके से हटाना चाहिए
  • कूड़े से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए

3. आग बुझाने की तकनीक में सुधार

  • लैंडफिल साइट्स पर फायर टेंडर और वाटर स्प्रिंकलर्स की तैनाती अनिवार्य होनी चाहिए
  • थर्मल सेंसर और ड्रोन मॉनिटरिंग से आग लगने की घटनाओं पर नजर रखी जा सकती है।

4. जागरूकता अभियान

  • स्थानीय लोगों और कचरा बीनने वालों को आग लगने के खतरों और बचाव के तरीकों की जानकारी दी जानी चाहिए
  • कूड़ा जलाने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए

निष्कर्ष

दिल्ली में कूड़े के ढेर में आग लगना एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्या बन गई है। यदि समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और विकराल हो सकती है। सरकार, नागरिक संगठनों और आम जनता को मिलकर कचरा प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा ताकि लैंडफिल साइट्स पर आग लगने की घटनाएँ रोकी जा सकें।

सभी के सामूहिक प्रयासों से ही दिल्ली को एक स्वच्छ, स्वस्थ और प्रदूषणमुक्त शहर बनाया जा सकता है।