केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोप-वे परियोजनाओं को केंद्र सरकार की मंजूरी
भारत सरकार ने उत्तराखंड में स्थित दो प्रमुख तीर्थ स्थलों—केदारनाथ और हेमकुंड साहिब—तक रोपवे निर्माण की मंजूरी प्रदान की है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य तीर्थयात्रियों की यात्रा को सुगम, सुरक्षित और समयबद्ध बनाना है। इस लेख में हम इन दोनों रोपवे परियोजनाओं के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
केदारनाथ रोपवे परियोजना
केदारनाथ धाम हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। वर्तमान में, सोनप्रयाग से केदारनाथ तक की यात्रा लगभग 18 किलोमीटर की पैदल दूरी पर आधारित है, जिसे तय करने में 6 से 8 घंटे का समय लगता है। रोपवे निर्माण के बाद यह दूरी मात्र 30 मिनट में पूरी की जा सकेगी।
परियोजना का विवरण
- लंबाई: 13 किलोमीटर
- स्टेशन: सोनप्रयाग, गौरीकुंड, चीड़बासा, लिनचोली, केदारनाथ
- क्षमता: प्रति घंटे 5,000 यात्री
- लागत: लगभग 1,000 करोड़ रुपये
- निर्माण अवधि: 4 से 6 वर्ष
इस परियोजना के लिए आवश्यक वन भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय स्वीकृतियां प्राप्त हो चुकी हैं, जिससे निर्माण कार्य शीघ्र प्रारंभ होने की संभावना है।
हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजना
हेमकुंड साहिब सिख धर्म का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां तक पहुंचने के लिए वर्तमान में गोविंदघाट से 19 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती है। रोपवे निर्माण से यह यात्रा सुगम हो जाएगी, जिससे अधिक श्रद्धालु इस पवित्र स्थल के दर्शन कर सकेंगे।
परियोजना का विवरण
- लंबाई: 12.6 किलोमीटर
- स्टेशन: गोविंदघाट, घांघरिया, हेमकुंड साहिब
- लागत: 764 करोड़ रुपये
- निर्माण अवधि: 4 से 6 वर्ष
- इस रोपवे के निर्माण से न केवल हेमकुंड साहिब की यात्रा सुगम होगी, बल्कि विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी तक पहुंच भी आसान हो जाएगी, क्योंकि घांघरिया से ही इन दोनों स्थानों के लिए मार्ग विभाजित होते हैं।
परियोजनाओं के लाभ
- यात्रा का समय और सुविधा: रोपवे के माध्यम से यात्रा का समय और कठिनाई दोनों में कमी आएगी, जिससे वृद्ध, बच्चे और शारीरिक रूप से अक्षम लोग भी आसानी से दर्शन कर सकेंगे।
- पर्यटन को बढ़ावा: यात्रा की सुगमता से अधिक संख्या में पर्यटक आकर्षित होंगे, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
- पर्यावरण संरक्षण: रोपवे के उपयोग से पैदल मार्ग पर होने वाले प्रदूषण और वन्यजीवों पर मानव गतिविधियों के प्रभाव में कमी आएगी।
- आपदा प्रबंधन: आपात स्थितियों में रोपवे राहत और बचाव कार्यों में तेजी और सुविधा प्रदान करेगा।
पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियां
इन परियोजनाओं के समक्ष कुछ पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियां भी हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है:
- वन्यजीव संरक्षण: रोपवे मार्ग वन्यजीव अभयारण्यों से होकर गुजरता है, इसलिए वन्यजीवों पर प्रभाव को न्यूनतम रखने के लिए विशेष उपाय आवश्यक होंगे।
- स्थानीय समुदायों का सहभाग: परियोजना के दौरान स्थानीय समुदायों की आजीविका और संस्कृति पर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए उनकी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी।
- पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन: निर्माण कार्यों से उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का समुचित मूल्यांकन और प्रबंधन आवश्यक है।
निष्कर्ष
केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे परियोजनाएं तीर्थयात्रियों की सुविधा, पर्यटन विकास और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होंगी। हालांकि, इन परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए पर्यावरणीय संतुलन, स्थानीय समुदायों की सहभागिता और सतत विकास के सिद्धांतों का पालन आवश्यक होगा। यदि इन सभी पहलुओं पर समुचित ध्यान दिया जाए, तो ये रोपवे परियोजनाएं उत्तराखंड के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होंगी।