महाकुंभ 2025: माघ पूर्णिमा पर होगा कल्पवास का समापन
“महाकुंभ 2025 में 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम तट पर कल्पवास किया है। सनातन धर्म में कल्पवास एक विशेष तपस्या मानी जाती है, जिसमें व्रत, संयम और सत्संग का पालन किया जाता है। इस वर्ष 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास समाप्त होगा। इस दिन सभी कल्पवासी संगम स्नान कर पूजन और दान के बाद अपने घरों को लौटेंगे।“
🔹 कल्पवास का धार्मिक महत्व
कल्पवास का अर्थ: कल्पवास का अर्थ संयमित जीवन, साधना और धर्मपालन से है।
शास्त्रों में वर्णित पुण्य: पद्मपुराण के अनुसार, माघ मास में प्रयागराज के संगम तट पर कल्पवास करने से सहस्त्र वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
माघ पूर्णिमा पर समापन: परंपरा के अनुसार 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास समाप्त होगा।
तीर्थपुरोहितों से पूजन और दान: कल्पवासी संगम स्नान कर अपने तीर्थपुरोहितों से पूजन कर कल्पवास का संकल्प पूर्ण करेंगे।
🔹 कल्पवास के नियम और विधि
✔️ संयम और व्रत: कल्पवासी एक माह तक सात्विक जीवन, ब्रह्मचर्य और सत्संग का पालन करते हैं।
✔️ दान का महत्व: कल्पवास समाप्ति पर अन्न, वस्त्र, दक्षिणा, आभूषण, गौदान और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान किया जाता है।
✔️ संगम स्नान: कल्पवास का पारण संगम स्नान से किया जाता है।
✔️ जौं का विसर्जन: कल्पवासी कल्पवास के आरंभ में बोए गए जौं को गंगा में प्रवाहित करते हैं।
✔️ तुलसी पूजन: तुलसी के पौधे को साथ घर ले जाना शुभ माना जाता है, जिसे मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
🔹 कल्पवास का चक्र और परंपराएं
12 साल का चक्र: महाकुंभ में 12 वर्षों तक लगातार कल्पवास करने का विशेष महत्व है।
गांव में भोज का आयोजन: मान्यता है कि कल्पवास के बाद गांव लौटकर भोज कराना चाहिए, तभी कल्पवास पूर्ण माना जाता है।
🔹 महाकुंभ 2025 में लाखों श्रद्धालु संगम तट पर कल्पवास कर रहे हैं, जो सनातन परंपरा की गहरी आस्था को दर्शाता है।
🔹 माघ पूर्णिमा (12 फरवरी) को संगम स्नान, पूजन और दान के साथ कल्पवास समाप्त होगा।
🔹 यह एक आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि का मार्ग है, जो मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोलता है।