कांगड़ा और मकलोडगंज बस अड्डा विवाद: कैबिनेट का फैसला अहम
“बस अड्डा मैनेजमेंट अथॉरिटी की वित्तीय चुनौती: 25 करोड़ की मांग”
हाल ही में बस अड्डा मैनेजमेंट अथॉरिटी के निदेशक मंडल की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि दोनों बस अड्डों को वापस अपने कब्जे में लिया जाए, मगर इसके लिए आर्बिटेशन का पैसा सरकार से मांगा जाए।
इस मामले में आगे चैलेंज करना हो, तो भी सरकार को 25 करोड़ रुपए की राशि देनी होगी और यदि इन बस अड्डों को वापस लेना हो, तो भी 25 करोड़ रुपए की राशि देनी पड़ेगी। क्योंकि बस अड्डा मैनेजमेंट अथॉरिटी के पास नहीं है, इसलिए सरकार इसके लिए पैसा दे, तभी मामला आगे बढ़ पाएगा।
जानकारी के अनुसार बस अड्डा मैनेजमेंट अथॉरिटी को इस संबंध में कैबिनेट के लिए प्रस्ताव बनाने को कहा गया है। अगली कैबिनेट बैठक जैसे ही होती है, उसमें इस मामले को लाया जाएगा। इसमें जितनी देरी होगी, उतना ही आर्बिटे्रशन का पैसा बढ़ता जाएगा।
अभी 25 करोड़ रुपए देकर दोनों बस अड्डों पर सरकार का कब्जा हो सकता है। ऐसे मेें देखना होगा कि कैबिनेट क्या निर्णय लेती है। यहां कुछ और बस अड्डों का भी विवाद चल रहा है, जिनको निजी कंपनियों को पीपीपी मोड पर दिया गया था। इसमें धर्मशाला के बस अड्डे को अभी एफसीए क्लियरेंस का मामला अटका हुआ है, तो वहीं शिमला के टूटीकंडी का आईएसबीटी भी विवादों में है।
इस बस अड्डे को चलाने वाली कंपनी ने नगर निगम का पैसा भी देना है, जिसको लेकर नगर निगम कोर्ट में भी मामला चल रहा है। इसी तरह के एचआरटीसी के भी अदालतों में कई मामले चल रहे हैं और इनकी संख्या लगभग 3000 बताई जा रही है।
इन मामलों को लेकर भी सूची तैयार कर रिपोर्ट देने को कहा गया है, ताकि इन पर किसी तरह से आगे बढ़ा जा सके। हाल ही में एक बिजली कंपनी सेली हाइड्रो को 64 करोड़ रुपए की आर्बिट्रेशन का मामला सामने आया है।
जिसमें हिमाचल भवन दिल्ली का गिरवी रखने तक की बात हो गई। इसी तरह से सरकारी संपत्तियों के ऐसे मामलों में अब सरकार विशेष सतर्कता बरत रही है। उनको बेवजह लटकाने से फिर सरकार को बड़ा नुकसान हो सकता है।
उपमुख्यमंत्री के निर्देश
उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री ने बस अड्डा मैनेजमेंट अथॉरिटी को कैबिनेट के सामने इस मामले के रखने को कहा है। यहां पर चर्चा की जाएगी और सरकार अवॉर्ड राशि को देने को लेकर निर्णय लेगी। माना जा रहा है कि सरकार इस मामले में 25 करोड़ रुपए की राशि दे देगी, ताकि कांगड़ा व मकलोडगंज दोनों बस अड्डे उसके अधीन आ जाएं।
इनको फिर आगे किस तरह से चलाना है, इस पर बाद में निर्णय होगा। बता दें कि कांगड़ा का बस अड्डा संचालित हो चुका है, जबकि मकलोडगंज में अभी विवाद है। ये दोनों अड्डे एक ही कंपनी के पास हैं, जिनके लिए सिंगल टेंडर हुआ था।