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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से संबंधित दो विधेयक लोकसभा में पेश किए गए

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परिचय

भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक सुदृढ़ और प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation, One Election) की अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए दो महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं। यह पहल देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। इस विधेयक का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को अधिक संगठित, पारदर्शी और कम खर्चीला बनाना है।

इस लेख में, हम एक राष्ट्र, एक चुनाव से संबंधित विधेयकों, उनकी प्रमुख विशेषताओं, संभावित प्रभावों, लाभ-हानि और विपक्ष की चिंताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

एक राष्ट्र, एक चुनावका विचार क्या है?

भारत में अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलगअलग समय पर होते हैं। इससे सरकारी संसाधनों पर भार बढ़ता है और प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है।

एक राष्ट्र, एक चुनाव का प्रस्ताव यह कहता है कि सभी राज्यों और केंद्र सरकार के चुनाव एक साथ कराए जाएं, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण होने वाले राजनीतिक और आर्थिक खर्च को कम किया जा सके

दो विधेयकों की प्रमुख विशेषताएँ

हाल ही में केंद्र सरकार ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए दो विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं:

1. लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने संबंधी विधेयक

  • इस विधेयक का उद्देश्य संविधान में संशोधन करके लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराना है।
  • चुनावों की तारीखें निर्धारित करने और निर्वाचन प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए चुनाव आयोग को अधिक शक्तियाँ देने का प्रावधान किया गया है।
  • इसके तहत यह प्रस्तावित किया गया है कि राज्यों में किसी कारणवश सरकार गिरने पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए और अगले आम चुनाव के साथ ही नया चुनाव कराया जाए।

2. ‘चुनावी प्रक्रिया सुधारविधेयक

  • यह विधेयक चुनाव प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाने से संबंधित है।
  • इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग, आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने और मतदाता सूची को केंद्रीकृत करने के प्रस्ताव शामिल हैं।
  • चुनाव प्रचार के खर्चों पर नियंत्रण लगाने के लिए नए नियमों की सिफारिश की गई है।

एक राष्ट्र, एक चुनावके पक्ष में तर्क

इस प्रस्ताव के समर्थन में सरकार और विशेषज्ञों ने कई महत्वपूर्ण तर्क दिए हैं:

1. खर्च में कमी

  • चुनाव कराने में भारी मात्रा में धन खर्च होता है, जिसे बार-बार चुनाव कराने के कारण कई गुना बढ़ जाता है। एक साथ चुनाव होने से यह खर्च काफी हद तक कम किया जा सकता है

2. प्रशासनिक बोझ कम होगा

  • बार-बार होने वाले चुनावों की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के प्रशासनिक कामकाज में बाधा पड़ती है।
  • आचार संहिता लागू होने से सरकारी योजनाएँ ठप हो जाती हैं और विकास कार्य धीमा हो जाता है।
  • यदि सभी चुनाव एक बार में हो जाएं, तो प्रशासनिक कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा

3. मतदाता भागीदारी बढ़ेगी

  • बार-बार चुनावों के कारण कुछ वर्गों की मतदान में रुचि कम हो जाती है। एक ही समय में चुनाव होने से मतदाता जागरूकता बढ़ेगी और मतदान प्रतिशत में सुधार होगा

4. राजनीति में स्थिरता

  • बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक अस्थिरता और सरकार पर दबाव बढ़ता है। एक साथ चुनाव होने से सरकारों को पूरे कार्यकाल के लिए बिना किसी रुकावट के काम करने का अवसर मिलेगा

एक राष्ट्र, एक चुनावके विपक्ष में तर्क

हालाँकि, इस प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है और इसके खिलाफ कई तर्क दिए जा रहे हैं:

1. संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन

  • भारत का संविधान संघीय ढांचे पर आधारित है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को अलग-अलग शक्तियाँ दी गई हैं।
  • राज्यों को अपने चुनाव स्वतंत्र रूप से कराने का अधिकार है और इस बदलाव से उनकी स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।

2. क्षेत्रीय दलों की स्थिति कमजोर होगी

  • जब चुनाव एक साथ होंगे, तो राष्ट्रीय दलों को अधिक लाभ होगा और छोटे क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है
  • इससे स्थानीय मुद्दे और क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका कमज़ोर हो सकती है

3. सरकार के गिरने पर क्या होगा?

  • यदि किसी राज्य सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त हो जाता है, तो उसे अगले आम चुनाव तक राष्ट्रपति शासन के तहत चलाना पड़ेगा
  • इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर हो सकती है और स्थानीय शासन प्रणाली पर असर पड़ सकता है

4. मतदाताओं पर असर

  • अलग-अलग चुनाव होने से मतदाता विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं।
  • एक साथ चुनाव कराने से राज्य और केंद्र के मुद्दों में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा

एक राष्ट्र, एक चुनावका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे।

  • 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे।
  • 1967 के बाद राज्यों में सरकारों के असमय गिरने और संविधान संशोधनों के कारण यह प्रक्रिया टूट गई
  • 1999 में, लॉ कमीशन ने भी एक राष्ट्र, एक चुनावकी सिफारिश की थी
  • 2014 के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवधारणा को फिर से उठाया और इस पर व्यापक चर्चा हुई।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

कई देशों में एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था है, जिससे प्रशासनिक स्थिरता बनी रहती है।

  • अमेरिका: राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव एक साथ होते हैं।
  • ब्रिटेन: संसदीय चुनाव निर्धारित समय पर होते हैं।
  • जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन में भी चुनाव एक साथ कराए जाते हैं।

आगे की राह

  • ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, 356 में संशोधन करना होगा
  • इसके लिए सर्वदलीय सहमति आवश्यक होगी।
  • राज्यों और केंद्र सरकार के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती होगी

निष्कर्ष

एक राष्ट्र, एक चुनाव भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी, प्रशासनिक स्थिरता बढ़ेगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और प्रभावी बनाया जा सकेगा। हालाँकि, इस प्रणाली को लागू करने में कई संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियाँ भी हैं।

इसलिए, सरकार को इस विषय पर सभी पक्षों से चर्चा करके एक ठोस समाधान निकालना होगा ताकि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाया जा सके।